Friday, July 24, 2020

Kargil Vijay Diwas

Kargil Vijay Diwas

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मिट्टी वतन की पूछती वह कौन है‚ वह कौन है?
 इतिहास जिस पर मौन है?
 जिसके लहू की बूंद का टीका हमारे भाल पर
‚ जिसके लहू की लालिमा स्वातंत्र शिशु के गाल पर‚
 जो बुझ गया गिर कर गगन से‚ 
निमिष में तारा–सदृश‚ बच ओस जितना भी न पाया‚ 
अश्रु जिसका काल पर जो दे गया जीवन विजन के फूल सा हँस नाश को
… जिसके लिये दो बूंद भी स्याही नहीं इतिहास को?
 वह कौन है‚ वह कौन है? 
जिसके मरण के नेह से‚ दीपक नये युग का जला‚
 काजल नयन के मेह से‚ मरुथल मनुज–मन का फला‚
 चुनता गया पद–पद्य से‚ कंटक मनुज की राह का‚ 
विष दासता को‚ मुक्ति को‚
 निज मृत्यु का अमृत पिला‚ चुभती न स्मृति जिसकी कभी‚ 
जो मैं किसी के शूल–सी‚ 
झरते न जिस पर आंख से‚ दो आंसुओं के फूल ही!
वह कौन है‚ वह कौन है?
 लगता नही जिसकी चिता पर आज मेला भी यहां‚ 
दो फूल क्या‚ मिलता किसी के हाथ ढेला भी कहां?
 वह मातृभू पर मर गया‚ फिर भी रहा अनजान ही
 इस मुक्ति उत्सव पर डला उस पर न धेला भी यहां; 
वह कब खिला‚ कब झर गया‚ 
अज्ञात हारसिंगार–सा किसको पता है दासता के काल उस अंगार का?
 वह कौन है‚ वह कौन है? इतिहास जिस पर मौन है?